तफसीरे अली इब्ने इब्राहीम में इब्ने आमिर ने अपने बाज़ असहाब से रिवायत की, "उसने कहा के हज़रत इमाम मोहम्मद बाकिर (अ.स.) के सामने एक शख्स ने छींक मारी और उसने छींक के बाद "अल्हम्दोलिल्लाह" कहा, लेकिन हज़रत इमाम मोहम्मद बाकिर (अ.स.) ने उसे "रहेमकल्लाह" न कहा और आप ने फ़रमाया के इस शख्स ने हमारे हक में कमी की है, जब भी तुम में से किसी को भी छींक आये तो उसे "अल्हम्दोलिल्लाहे रब्बिल आलमीन व सल्लल्लाहो अला मोहम्मदिन व अह्लैबैतेही " कहना चाहिए . यह सुन कर उस शख्स ने आप के बताये हुए कलम कहे तो उसके जवाब में आपने उसे दुआए खैर दी .
किताब "मन ला यहज़ुर" में हज़रत अली (अ.स.) से मन्कूल है, आप ने फ़रमाया: यहूदियों का एक गिरोह रसूले ख़ुदा (स.अ.) की खिदमत में हाज़िर हुआ. उनके आलिम ने हज़रत से कुछ मसाएल पूछे, उन में एक मसला यह भी था के अल्लाह तआला ने आप की उम्मत पर तीस गिन के रोज़े क्यूँ फ़र्ज़ किए जब की दूसरी उम्मतों पर इससे ज़्यादा रोज़े फ़र्ज़ थे? उन हज़रत (स.अ.) ने फ़रमाया: "जब हज़रत आदम ने शजरे मम्नूआ का फल खाया तो वह तीस दिनों तक उनके पेट में बाक़ी रहा, इस लिए अल्लाह तआला ने उनकी औलाद के लिए तीस दिन तक खाना पीना मम्नू करार दिया. रात के वक़्त खाने की इजाज़त अल्लाह तआला का खुसूसी एहसान है और यही एहसान आदम पर भी किया गया था."